पिता होना इतना मुश्किल है. पिता के ऊपर किसी ने बहुत अच्छा लिखा है कि
पिता रोटी है कपड़ा है मकान है
पिता नन्हे से परिंदे का बड़ा आसमान है
पिता है तो घर में प्रतिपल राग है
पिता से मां की चूड़ी बिंदी और सुहाग है
पिता है तो बच्चों के सारे सपने हैं
पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं
बात उस इंसान की जो जीवन में शायद सबसे अधिक कुर्बानी देता है और जिसे जीवन में सबसे कम क्रेडिट नसीब होता है. पिता आखिर कौन है पिता,
पिता वह है जो नौकरी पर जाता तो जवान है पर लौटता बूढ़ा होकर है. एक बाप अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के सपने पूरे करने और घर को ठीक से चलाने में निकाल देता है उसके जेब में पैसे हो ना हो पर दिल में हौसला जरूर होता है. खुद के लिए 500 का जूता भी नहीं खरीदेगा पर औलाद की खुशी के लिए 5000 का जूता भी उसके पैरों में पहना देगा.
आज देश भर के नौजवानों को एक बात बता देना चाहता हूं कि जिनके औलाद नहीं होती ना, वो ना जाने कितने व्रत कितने यत्न क्या-क्या जतन करते हैं. ना जाने कौन-कौन सी चौखट पर अपना माथा रगड़ हैं दरदर की ठोकरें खाते हैं और जिस पल उनकी गोद में कोई नन्हा फरिश्ता आता है ना वो मां-बाप उसी पल से उसकी सारी जिंदगी की चिंताओं को अपने सर ले लेते हैं. शादी, बया, पढ़ाई-लिखाई सबकी फिक्र उसी पल से होने लगती है. मां-बाप थोड़ा-थोड़ा पैसा बचा के बेटियों के लिए एक-एक गहना बनाना शुरू करते हैं ताकि उसकी शादी में काम आ सके एक बाप अपने जीवन भर के प्रोविडेंट फंड का तमाम पैसा एक झटके में हंसते-हंसते अपने बच्चों को दे देता है.
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